वो मुझ से पूछने लगा मेरे सवाल अब
और मैं भी दे रहा हूँ जो इस के जवाब थे
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इन से आवाज़-ए-कर्ब आती है
मिट्टी तिरे महकने से मुझ को गुमान है
राहत के वास्ते न रिफ़ाक़त के वास्ते
इस पल दो पल की हस्ती में
ये कैसे ख़ौफ़ हमें आज फिर सताने लगे
तुझ को ही सोचता रहूँ फ़ुर्सत नहीं रही
जैसे कि इक फ़्रेम हो तस्वीर के बग़ैर
क्यूँ मिल रही है उन को सज़ा चीख़ती रही
कल पहली बार उस से इनायत सी हो गई
अपने लिए भी कोई रिआयत रवा नहीं
जो माल उस ने समेटा था वो भी सारा गया