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मिट्टी तिरे महकने से मुझ को गुमान है - सय्यद अनवार अहमद कविता - Darsaal

मिट्टी तिरे महकने से मुझ को गुमान है

मिट्टी तिरे महकने से मुझ को गुमान है

बारिश की बूँद बूँद में इक दास्तान है

ये सोचते हो क्यूँ कि ख़ुदा बस तुम्हें मिला

देखो जहाँ ज़मीं है वहाँ आसमान है

लगता है घर वही जहाँ आपस में प्यार हो

वर्ना तो लोग रहते हैं और इक मकान है

आँखों की बात-चीत में पड़ना ये सोच कर

नज़रों के लेन-देन में दिल का ज़ियान है

हैरत है कैसे फूल से ख़ुशबू हुई जुदा

मौक़ा मिले तो सोचना क्या दरमियान है

शायद कि और भी कहीं बस्ती है ज़िंदगी

लगता है और भी कहीं ऐसा जहान है

तुम ही कहो कि वक़्त से क्यूँ हार मान लूँ

जब रूह में उमंग है दिल भी जवान है

'अनवार' बज़्म है सजी हो जाए शाएरी

उर्दू से हम को इश्क़ है अपनी ज़बान है

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In Hindi By Famous Poet Syed Anwar Ahmad. is written by Syed Anwar Ahmad. Complete Poem in Hindi by Syed Anwar Ahmad. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.