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पेच-दर-पेच सवालात में उलझे हुए हैं - सय्यद अमीन अशरफ़ कविता - Darsaal

पेच-दर-पेच सवालात में उलझे हुए हैं

पेच-दर-पेच सवालात में उलझे हुए हैं

हम अजब सूरत-ए-हालात में उलझे हुए हैं

ख़त्म होने का नहीं मारका-ए-इश्क़-ओ-हवस

मसअले सारे मफ़ादात में उलझे हुए हैं

किस ख़सारे में नज़र है कि सिमट जाती है

कुछ अभी दाएरा-ए-ज़ात में उलझे हुए हैं

इन में तो मुझ से ज़ियादा है परेशाँ-नज़री

आईने शहर-ए-कमालात में उलझे हुए हैं

इस पे दावा भी कि ये कार-ए-मसीहाई है

सारे अज़हान ख़ुराफ़ात में उलझे हुए हैं

कुर्रा-ए-ख़ाक पे पड़ते ही नहीं उन के क़दम

दीदा-वर सैर-ए-तिलिस्मात में उलझे हुए हैं

नूर-ए-मुतलक़ की है तश्बीह न तमसील मगर

हम इशारात ओ किनायात में उलझे हुए हैं

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In Hindi By Famous Poet Syed Amin Ashraf. is written by Syed Amin Ashraf. Complete Poem in Hindi by Syed Amin Ashraf. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.