न जाने जाए कहाँ तक ये सिलसिला दिल का
न जाने जाए कहाँ तक ये सिलसिला दिल का
वो मिल भी जाए तो मिलता नहीं सिला दिल का
बरस रही थीं बहारें तरस रही थी ज़मीं
सफ़र तमाम हुआ फूल कब खिला दिल का
कहाँ है वो शह-ख़ूबी कहाँ दरीचा-ए-शब
गए वो दिन कि समाअत में था गिला दिल का
वही ख़राबी-ए-जाँ का सबब भी है लेकिन
क़रार-ए-जाँ है कि ये है मुआमला दिल का
उसे फ़ुसूँ-गर ओ बे-मेहर मैं नहीं कहता
फ़िराक़-ए-यार का बाइस है फ़ासला दिल का
तलाश उसी की मुसलसल उसी को पा कर भी
ज़मीं से ता-ब-फ़लक है ये मश्ग़ला दिल का
किसी तिलिस्म-ए-हिजाबात में कोई ग़म है
भटक रहा है ख़यालों में क़ाफ़िला दिल का
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