जाने किस मोड़ पे दे हिज्र की सौग़ात मुझे
जाने किस मोड़ पे दे हिज्र की सौग़ात मुझे
पर गवारा भी नहीं तर्क-ए-मुलाक़ात मुझे
उस का क्या जाता जो मुँह फेर के हँस भी देता
ख़ुश-गुमानी ही सही राहत-ए-जज़्बात मुझे
हुस्न भी हुस्न है मल्बूस-ए-हया है जब तक
पुर-कशिश और नज़र आए हिजाबात मुझे
फ़र्क़ मिट्टी का है दरवेशी ओ सुल्तानी में
वर्ना ये लगते हैं पर्वर्दा-ए-हालात मुझे
अब्र बरसा भी तो बोसीदा मकानों से परे
इस बरस आई तो क्या दे गई बरसात मुझे
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