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हल्क़ा-ए-शाम-ओ-सहर से नहीं जाने वाला - सय्यद अमीन अशरफ़ कविता - Darsaal

हल्क़ा-ए-शाम-ओ-सहर से नहीं जाने वाला

हल्क़ा-ए-शाम-ओ-सहर से नहीं जाने वाला

दर्द इस दीदा-ए-तर से नहीं जाने वाला

पा-ब-ज़ंजीर निकालेगा सफ़र की तदबीर

तनतना फ़र्क़-ए-हुनर से नहीं जाने वाला

तिश्ना-लब को तो मयस्सर नहीं इक जुरआ-ए-आब

बुल-हवस लुक़्मा-ए-तर से नहीं जाने वाला

मुंक़तअ करते हैं बाग़-ओ-शजर-ओ-शाख़ उसे

रब्त मेहनत का समर से नहीं जाने वाला

पुर-कशिश भी है सर-अफ़राज़ी-ए-दुनिया भी मगर

ज़हर गंजीना-ए-ज़र से नहीं जाने वाला

तर्क-ए-दुनिया हो कि दुनिया कि तलब हो प्यारे

ये वो सौदा है जो सर से नहीं जाने वाला

इस पे एक और ग़ज़ब अबरू-ए-ख़मदार भी है

बच के इस तेग़-ए-नज़र से नहीं जाने वाला

सारी ख़ुशबू सिमट आई अलिफ़-ए-क़ामत की

गुल-ए-तर काफ़-ए-कमर से नहीं जाने वाला

पैरव-ए-शेर-ए-ख़ुदा हूँ असदुल्लाही हूँ

या-'अली' मैं तिरे दर से नहीं जाने वाला

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In Hindi By Famous Poet Syed Amin Ashraf. is written by Syed Amin Ashraf. Complete Poem in Hindi by Syed Amin Ashraf. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.