बहार आती है लेकिन सर में वो सौदा नहीं होता
बहार आती है लेकिन सर में वो सौदा नहीं होता
हर आहट पर तिरी आवाज़ का धोका नहीं होता
तिरा ग़म हो तो आ जाए सलीक़ा मुस्कुराने का
कि हर आज़ार-ए-जाँ शाइस्ता-ए-दुनिया नहीं होता
निशाँ कुंज-ए-तरब का कोहसार-ए-ग़म से मिलता है
भटक जाता हूँ मैं जब राह में दरिया नहीं होता
यही सूरत तो हर-सू कूचा-ओ-बाज़ार में भी है
जहाँ वहशत बरसती हो वहीं सहरा नहीं होता
इक आईना बहर-सूरत पस-ए-आईना होता है
जो चमके आबगीने में वही चेहरा नहीं होता
उसे ये ख़ुशनुमा दुनिया कभी अच्छी नहीं लगती
किसी मसरफ़ का कार-ए-दीदा-ए-बीना नहीं होता
बहाना तुझ से मिलने का ये तन्हाई ने ढूँडा है
सर-ए-महफ़िल किसी को दीद का यारा नहीं होता
जो दी हैं ने'मतें यारब तो फिर हक़्क़-ए-तसर्रुफ़ दे
नज़र अपनी दिमाग़ अपना है दिल अपना नहीं होता
ज़रा कुछ शग़्ल-ए-नेको-कार भी 'सय्यद-अमीन-अशरफ़'
फ़क़त नाम-ओ-नसब से आदमी अच्छा नहीं होता
(437) Peoples Rate This