सय्यद अमीन अशरफ़ कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का सय्यद अमीन अशरफ़
नाम | सय्यद अमीन अशरफ़ |
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अंग्रेज़ी नाम | Syed Amin Ashraf |
जन्म की तारीख | 1931 |
जन्म स्थान | Aligarh |
मैं पर-शिकस्ता न था बादलों के बीच मगर
मैं देखता हूँ फ़राज़-ए-जुनूँ से दुनिया को
लज़्ज़त-ए-दीद ख़ुदा जाने कहाँ ले जाए
किसी से इश्क़ हो जाने को अफ़्साना नहीं कहते
कहीं पे दस्त-ए-निगारीं कहीं लब-ए-ल'अलीं
कहीं भी ताइर-ए-आवारा हो मगर तय है
जिसे ना-ख़्वाब कहते हैं उसी को ख़्वाब कहते हैं
इस तरह चश्म-ए-नीम-वा ग़ाफ़िल भी थी बेदार भी
हवा का तब्सिरा ये साकिनान-ए-शहर पे था
हल्क़ा-ए-शाम-ओ-सहर से नहीं जाने वाला
है ता-हद्द-ए-इम्काँ कोई बस्ती न बयाबाँ
है इर्तिबात-शिकन दाएरों में बट जाना
इक ख़ला है जो पुर नहीं होता
इक चाँद है आवारा-ओ-बेताब ओ फ़लक-ताब
अजब नहीं कि हो दीवार नुक़्ता-ए-मौहूम
ज़ेब उस को ये आशोब-ए-गदाई नहीं देता
ये आँख तंज़ न हो ज़ख़्म-ए-दिल हरा न लगे
वो ख़ुद को मेरे अंदर ढूँडता है
वजूद को जिगर-ए-मो'तबर बनाते हैं
तसलसुल पाएमाली का मिलेगा
सुख़न की शब लहू होती रहेगी
शौक़-ए-वारफ़्ता को मलहूज़-ए-अदब भी होगा
रंज-ए-दुनिया हो कि रंज-ए-आशिक़ी क्या देखना
पेच-दर-पेच सवालात में उलझे हुए हैं
न जाने रौज़न-ए-दीवार क्या जादू जगाता है
न जाने जाए कहाँ तक ये सिलसिला दिल का
मुनव्वर और मुबहम इस्तिआरे देख लेता हूँ
मलाल-ए-ग़ुंचा-ए-तर जाएगा कभी न कभी
लरज़ रहा था फ़लक अर्ज़-ए-हाल ऐसा था
किसी ख़याल की रौ में था मुस्कुराते हुए