इज़्ज़त उसी की अहल-ए-नज़र की नज़र में है
इज़्ज़त उसी की अहल-ए-नज़र की नज़र में है
सब कुछ बशर में है जो मोहब्बत बशर में है
क्या पूछते हो जौहर-ए-तेग़-ए-निगाह-ए-नाज़
ये उस से तेज़ है जो तुम्हारी कमर में है
क़ासिद सवाल-ए-वस्ल सुनें और वो चुप रहें
क्या क्या न शान-ए-बेख़बरी इस ख़बर में है
क्या जाने किस सवाल का भेजा है ये जवाब
इक तीर इक छुरी कफ़-ए-पैग़ाम्बर में है
और एक बार क़ल्ब को तड़पाए वो निगाह
इतनी सकत अभी तो हमारे जिगर में है
ऐ दिल किसी की याद भी और इज़्तिराब भी
इतना नहीं ख़याल कि मेहमान घर में है
घबराए क्यूँ न कशमकश-ए-नज़अ' से 'दिलेर'
पहला ये इत्तिफ़ाक़ उसे उम्र भर में है
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