ऊँची नीची पेच खाती दौड़ती काली सड़क
ऊँची नीची पेच खाती दौड़ती काली सड़क
कितने सोते जागते फ़ित्नों की है वाली सड़क
रात की गहरी ख़मोशी टिमटिमाती रौशनी
एक मैं तन्हा मुसाफ़िर दूसरी ख़ाली सड़क
आते जाते लाख क़दमों के निशाँ उभरे मगर
आज भी चिकनी नज़र आती है मतवाली सड़क
सब के सब राही मुसाफ़िर मंज़िलों तक जा चुके
है मगर हद्द-ए-नज़र अब नक़्श-ए-पामाली सड़क
पी चुकी सब आम की ख़ुशबू को बू पेट्रोल की
शहर से आई लिए कैसी ये ख़ुश-हाली सड़क
उस के सारे पेच-ओ-ख़म का राज़-दाँ हूँ मैं 'शमीम'
दास्ताँ रखती है तफ़सीली ये इजमाली सड़क
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