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तुम मिरे पास रहो जिस्म की गरमी बख़्शो - सय्यद अहमद शमीम कविता - Darsaal

तुम मिरे पास रहो जिस्म की गरमी बख़्शो

तुम मिरे पास रहो जिस्म की गरमी बख़्शो

सर्द है रात बहुत घर से न बाहर निकलो

दूधिया चाँदनी बिस्तर पे कहाँ से आई

फिर कोई चाँद न निकला हो गली में देखो

सर पे कब कौन कहाँ संग-ए-मलामत मारे

पारसाओं से परे कल्बा-ए-अहज़ाँ में रहो

कोई भौंरा न कहीं फूल का रस पी जाए

अपनी मदहोश निगाहों के दरीचे खोलो

जाने किस मंज़िल-ए-बे-नाम की जानिब निकलूँ

अपनी तन्हाई से डरता हूँ मिरे साथ रहो

बर्फ़ इक रोज़ पहाड़ों की पिघल जाएगी

सर्द-मेहरी-ए-ज़माना की शिकायत न करो

कितनी बीती हुई सदियों की कहानी हूँ 'शमीम'

मेरे चेहरे की ये बिगड़ी हुई तहरीर पढ़ो

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In Hindi By Famous Poet Syed Ahmed Shameem. is written by Syed Ahmed Shameem. Complete Poem in Hindi by Syed Ahmed Shameem. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.