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था आईने के सामने चेहरा खुला हुआ - सय्यद अहमद शमीम कविता - Darsaal

था आईने के सामने चेहरा खुला हुआ

था आईने के सामने चेहरा खुला हुआ

पानी पे जैसे चाँद का साया पड़ा हुआ

घुलती गई बदन में तमाज़त शराब की

साग़र निगाह का था लबालब भरा हुआ

कल रात थोड़ी देर को पलकें झपक गईं

जागा तो जोड़ जोड़ था अपना दुखा हुआ

शायद कि सो गए हैं बहुत थक के दिल-जले

शहर-ए-जुनूँ तमाम है सूना पड़ा हुआ

तहज़ीब ढूँढती है किसी इर्तिक़ा की शक्ल

इक़बाल-मंदियों का है सूरज ढला हुआ

दिल का वजूद ग़म के अंधेरे में खो गया

जैसे किसी मज़ार का कतबा मिटा हुआ

काँधे पे ढो रहा हूँ गए वक़्त की सलीब

काँटों का ताज सर पे है अपने रखा हुआ

ग़र्क़ाब हो न जाए कहीं ज़ब्त का जहाँ

फिर आज दर्द-ए-दिल का है दरिया चढ़ा हुआ

हालत न अब 'शमीम' की पूछो कि वो ग़रीब

होगा किसी गली में तमाशा बना हुआ

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In Hindi By Famous Poet Syed Ahmed Shameem. is written by Syed Ahmed Shameem. Complete Poem in Hindi by Syed Ahmed Shameem. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.