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शोला-ए-इश्क़ में जो दिल को तपाँ रखते हैं - सय्यद अहमद शमीम कविता - Darsaal

शोला-ए-इश्क़ में जो दिल को तपाँ रखते हैं

शोला-ए-इश्क़ में जो दिल को तपाँ रखते हैं

अपनी ख़ातिर में कहाँ कौन-ओ-मकाँ रखते हैं

सर झुकाते हैं उसी दर पे कि वो जानता है

हम फ़क़ीरी में भी अंदाज़-ए-शहाँ रखते हैं

बादबाँ चाक है और बाद-ए-मुख़ालिफ़ मुँह-ज़ोर

हौसला ये है कि कश्ती को रवाँ रखते हैं

वहशत-ए-दिल ने हमें चैन से जीने न दिया

चश्म गिर्यां कभी जाँ शोला-फ़िशाँ रखते हैं

उस को फ़ुर्सत नहीं तो हम भी ज़बाँ क्यूँ खोलें

वर्ना सीने में गुल-ए-ज़ख़्म निहाँ रखते हैं

अर्श-ता-फ़र्श फिराया गया कूचा कूचा

अब ख़ुदा जाने मिरी ख़ाक कहाँ रखते हैं

दिल में वो रश्क-ए-गुलिस्ताँ लिए फिरते हैं 'शमीम'

फूल खिलते हैं क़दम आप जहाँ रखते हैं

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In Hindi By Famous Poet Syed Ahmed Shameem. is written by Syed Ahmed Shameem. Complete Poem in Hindi by Syed Ahmed Shameem. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.