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किस तरह ज़िंदा रहेंगे हम तुम्हारे शहर में - सय्यद अहमद शमीम कविता - Darsaal

किस तरह ज़िंदा रहेंगे हम तुम्हारे शहर में

किस तरह ज़िंदा रहेंगे हम तुम्हारे शहर में

हर तरफ़ बिखरे हुए हैं माह-पारे शहर में

जगमगाती रौशनी में ये नहाते सीम-तन

जैसे उतरे हों ज़मीं पर चाँद तारे शहर में

मिस्ल-ए-ख़ुशबू-ए-सबा फैली हुई है हर तरफ़

गेसू-ए-बंगाल की ख़ुशबू हमारे शहर में

हुस्न वालों के सितम सह कर भी हम ज़िंदा रहे

वर्ना कितनों के हुए हैं वारे न्यारे शहर में

ये मता-ए-पारसाई भी न लुट जाए कहीं

दे रहे हैं दावत-ए-लग़्ज़िश नज़ारे शहर में

लहलहाते खेत नद्दी गाँव की प्यारी हवा

छोड़ कर बेकार आए हम तुम्हारे शहर में

अपने ही ज़ौक़-ए-जमाल-ओ-हुस्न के हाथों 'शमीम'

आज हम बदनाम आवारा हैं सारे शहर में

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In Hindi By Famous Poet Syed Ahmed Shameem. is written by Syed Ahmed Shameem. Complete Poem in Hindi by Syed Ahmed Shameem. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.