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वो बुत मुब्तला-तलब मेहर-तलब वफ़ा-तलब - सय्यद अाग़ा अली महर कविता - Darsaal

वो बुत मुब्तला-तलब मेहर-तलब वफ़ा-तलब

वो बुत मुब्तला-तलब मेहर-तलब वफ़ा-तलब

ये दिल आश्ना-तलब जौर-तलब जफ़ा-तलब

याद नहीं उन्हें ज़रा तीरा-दिलों का ख़ूँ-बहा

हैं तिरी चश्म-ए-दस्त-ओ-पा सुर्मा-तलब हिना-तलब

बस्ता-ए-इंतिशार हैं तालिब-ए-ज़ुल्फ़-ए-यार हैं

उस के सियाहकार हैं रंज-तलब बला-तलब

रहती है दिल में मुत्तसिल आतिश-ए-रंज मुस्तक़िल

रोज़-ए-अव्वल से है ये दिल ग़म-तलब आश्ना-तलब

रात-दिन उस का दाग़-ए-आह रखता है मेरे दिल से राह

'मेहर' हैं जैसे मेहर-ओ-माह नूर-तलब ज़िया-तलब

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In Hindi By Famous Poet Syed Agha Ali Mehr. is written by Syed Agha Ali Mehr. Complete Poem in Hindi by Syed Agha Ali Mehr. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.