तूर-ए-दिल ख़राब बना पर बिगड़ गया
तूर-ए-दिल ख़राब बना पर बिगड़ गया
गो शीशा-ए-शराब बना पर बिगड़ गया
लिपटा जो उस से ख़्वाब में मैं आँख खुल गई
काम ऐ क़ुसूर-ए-ख़्वाब बना पर बिगड़ गया
हर-चंद मिस्ल-ए-ख़ाना-ए-दुनिया-ए-बे-सबात
मैं ख़ानुमाँ-ख़राब बना पर बिगड़ गया
मुमकिन हुई न तेरे पसीने से हमसरी
किस किस तरह गुलाब बना पर बिगड़ गया
पुर्सिश के साथ अफ़्व भी ऐ 'मेहर' था शरीक
दफ़्तर दम-ए-हिसाब बना पर बिगड़ गया
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