रंगत उसे पसंद है ऐ नस्तरन सफ़ेद
रंगत उसे पसंद है ऐ नस्तरन सफ़ेद
पहने न क्यूँ वो रश्क-ए-चमन पैरहन सफ़ेद
भाता है उस को शीर-ओ-शकर का तलाज़मा
रखता है अपने दाँत वो शीरीं-दहन सफ़ेद
बैठे हैं गिर्द सीमतनान-ए-सफेद-पोश
उस माहताब की है तमाम अंजुमन सफ़ेद
है बे-हिना भी पंजा-ए-नाज़ुक पर इक बहार
होते हैं बाज़ बाज़ गुल-ए-नारवन सफ़ेद
मैं रंग-ए-चश्म-ए-वहशी-ए-जानाँ से तंग हूँ
आधा हिरन सियाह है आधा हिरन सफ़ेद
रंगीनी-ए-लिबास से अहल-ए-फ़ना को क्या
है इब्तिदा-ए-दहर से रख़्त-ए-कफ़न सफ़ेद
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