अपनी आँखों से जो वो ओझल है
दिल तड़पता है जान बेकल है
फुलजड़ी है इज़ार-बंद नहीं
नाफ़ से पाँव तक झला-झल है
न छलावे में है न बिजली में
तेरी रफ़्तार में जो छलबल है
नाज़ुकी में सफ़ा में बू में वो जिस्म
फूल है आइना है संदल है
डोर तार-ए-शुआअ' है ऐ 'मेहर'
आफ़्ताब उस परी का तक्कल है