यही दिल जिस को शिकायत है गिराँ-जानी की
यही दिल कार-गह-ए-शीशा-गिराँ होता है
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Habib Jalib
Anwar Masood
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(592) Peoples Rate This
चाँद सितारों से क्या पूछूँ कब दिन मेरे फिरते हैं
जल्वा-ए-यार से क्या शिकवा-ए-बेजा कीजे
आई सहर क़रीब तो मैं ने पढ़ी ग़ज़ल
ग़म-ए-दौराँ ग़म-ए-जानाँ का निशाँ है कि जो था
सुबू उठा कि ये नाज़ुक मक़ाम है साक़ी
मुझे धोका हुआ कि जादू है
तेरे ख़ुश-पोश फ़क़ीरों से वो मिलते तो सही
वो मुझे मश्वरा-ए-तर्क-ए-वफ़ा देते थे
ये क्या तिलिस्म है दुनिया पे बार गुज़री है
साक़िया है तिरी महफ़िल में ख़ुदाओं का हुजूम
दर-ए-इख़्लास की दहलीज़ पर ख़म हूँ 'आबिद'
कोई बरसा न सर-ए-किश्त-ए-वफ़ा