या कभी आशिक़ी का खेल न खेल
या अगर मात हो तो हाथ न मल
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चाँद सितारों से क्या पूछूँ कब दिन मेरे फिरते हैं
ये हादिसा भी हुआ है कि इश्क़-ए-यार की याद
दिल का मोआ'मला निगह-ए-आशना के साथ
मेरे जीने का ये उस्लूब पता देता है
इक दिन उस ने नैन मिला के शर्मा के मुख मोड़ा था
साक़िया है तिरी महफ़िल में ख़ुदाओं का हुजूम
सब के जल्वे नज़र से गुज़रे हैं
रेत की तरह किनारों पे हैं डरने वाले
नग़्मा ऐसा भी मिरे सीना-ए-सद-चाक में है
ऐ इल्तिफ़ात-ए-यार मुझे सोचने तो दे
किसी की इश्वा-गरी से ब-ग़ैर-ए-फ़स्ल-ए-बहार
जल्वा-ए-यार से क्या शिकवा-ए-बेजा कीजे