शरअ-ओ-आईन की ताज़ीर के बा-वस्फ़ शबाब
लब-ओ-रुख़्सार की जानिब निगराँ है कि जो था
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मुझे धोका हुआ कि जादू है
जल्वा-ए-यार से क्या शिकवा-ए-बेजा कीजे
आई सहर क़रीब तो मैं ने पढ़ी ग़ज़ल
इश्क़ की तर्ज़-ए-तकल्लुम वही चुप है कि जो थी
ऐ इल्तिफ़ात-ए-यार मुझे सोचने तो दे
चाँद सितारों से क्या पूछूँ कब दिन मेरे फिरते हैं
ग़म-ए-दौराँ ग़म-ए-जानाँ का निशाँ है कि जो था
इक दिन उस ने नैन मिला के शर्मा के मुख मोड़ा था
गर्दिश-ए-जाम नहीं रुक सकती
कोई बरसा न सर-ए-किश्त-ए-वफ़ा
आम हो फ़ैज़-ए-बहाराँ तो मज़ा आ जाए