शब-ए-हिज्राँ की दराज़ी से परेशान न था
ये तेरी ज़ुल्फ़-ए-रसा है मुझे मालूम न था
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तेरे ख़ुश-पोश फ़क़ीरों से वो मिलते तो सही
आज आया है अपना ध्यान हमें
मेरे जीने का ये उस्लूब पता देता है
कहते थे तुझी को जान अपनी
ग़म के तारीक उफ़ुक़ पर 'आबिद'
गर्दिश-ए-जाम नहीं रुक सकती
चैन पड़ता है दिल को आज न कल
शरअ-ओ-आईन की ताज़ीर के बा-वस्फ़ शबाब
वाइज़-ए-शहर ख़ुदा है मुझे मा'लूम न था
दिल का मोआ'मला निगह-ए-आशना के साथ
ये क्या तिलिस्म है दुनिया पे बार गुज़री है