मुझे धोका हुआ कि जादू है
पावँ बजते हैं तेरे बिन छागल
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मय हो साग़र में कि ख़ूँ रात गुज़र जाएगी
दर-ए-इख़्लास की दहलीज़ पर ख़म हूँ 'आबिद'
शरअ-ओ-आईन की ताज़ीर के बा-वस्फ़ शबाब
उन्हीं को अर्ज़-ए-वफ़ा का था इश्तियाक़ बहुत
सब के जल्वे नज़र से गुज़रे हैं
ऐ इल्तिफ़ात-ए-यार मुझे सोचने तो दे
मेरा जीना है सेज काँटों की
चाँद सितारों से क्या पूछूँ कब दिन मेरे फिरते हैं
आम हो फ़ैज़-ए-बहाराँ तो मज़ा आ जाए
ये क्या तिलिस्म है दुनिया पे बार गुज़री है
ये अर्ज़-ए-शौक़ है आराइश-ए-बयाँ भी तो हो
सुबू उठा कि ये नाज़ुक मक़ाम है साक़ी