कहते थे तुझी को जान अपनी
और तेरे बग़ैर भी जिए हैं
Allama Iqbal
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Gulzar
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(522) Peoples Rate This
सब के जल्वे नज़र से गुज़रे हैं
वाइज़ो मैं भी तुम्हारी ही तरह मस्जिद में
जो भी मिंजुमला-ए-आशुफ़्ता सरा होता है
वो मुझे मश्वरा-ए-तर्क-ए-वफ़ा देते थे
चैन पड़ता है दिल को आज न कल
तेरे ख़ुश-पोश फ़क़ीरों से वो मिलते तो सही
या कभी आशिक़ी का खेल न खेल
मुझे धोका हुआ कि जादू है
किसी की इश्वा-गरी से ब-ग़ैर-ए-फ़स्ल-ए-बहार
ये अर्ज़-ए-शौक़ है आराइश-ए-बयाँ भी तो हो
मय हो साग़र में कि ख़ूँ रात गुज़र जाएगी
ग़म-ए-दौराँ ग़म-ए-जानाँ का निशाँ है कि जो था