ग़म के तारीक उफ़ुक़ पर 'आबिद'
कुछ सितारे सर-ए-मिज़्गाँ गुज़रे
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ग़म-ए-दौराँ ग़म-ए-जानाँ का निशाँ है कि जो था
कोई बरसा न सर-ए-किश्त-ए-वफ़ा
उन्हीं को अर्ज़-ए-वफ़ा का था इश्तियाक़ बहुत
सब के जल्वे नज़र से गुज़रे हैं
मुझे धोका हुआ कि जादू है
कुछ एहतिराम भी कर ग़म की वज़्अ'-दारी का
ये अर्ज़-ए-शौक़ है आराइश-ए-बयाँ भी तो हो
इश्क़ की तर्ज़-ए-तकल्लुम वही चुप है कि जो थी
सुबू उठा कि ये नाज़ुक मक़ाम है साक़ी
इक दिन उस ने नैन मिला के शर्मा के मुख मोड़ा था
चैन पड़ता है दिल को आज न कल
यही था वक़्फ़ तिरी महफ़िल-ए-तरब के लिए