ग़म-ए-दौराँ ग़म-ए-जानाँ का निशाँ है कि जो था
ग़म-ए-दौराँ ग़म-ए-जानाँ का निशाँ है कि जो था
वस्फ़-ए-ख़ूबाँ ब-हदीस-ए-दिगराँ है कि जो था
लज़्ज़त-ए-अर्ज़-ए-वफ़ा राहत-ए-जाँ है कि जो थी
दिल-तपाँ अश्क-ए-रवाँ शौक़-ए-जवाँ है कि जो था
शरअ-ओ-आईन की ताज़ीर के बा-वस्फ़ शबाब
लब-ओ-रुख़्सार की जानिब निगराँ है कि जो था
मेरे पाँव से हैं उलझे होए रेशम के से तार
हमदमो ये तो वही बंद-ए-गिराँ है कि जो था
इश्क़ की तर्ज़-ए-तकल्लुम वही चुप है कि जो थी
लब-ए-ख़ुश-गू-ए-हवस महव-ए-बयाँ है कि जो था
राह-रौ दश्त में फ़रियाद-कुनाँ हैं कि जो था
ख़ंदा-ज़न क़ाफ़िला राह-ए-बराँ है कि जो था
मुग़बचे ख़ुश हैं कि बज़्म उन की है साक़ी उन का
बर-सर-ए-कार वही पीर-ए-मुग़ाँ है कि जो था
जल्वा-ए-यार से क्या शिकवा-ए-बे-जा कीजे
शौक़-ए-दीदार का आलम वो कहाँ है कि जो था
हल्क़ा-ए-वाज़ से अब तक है गुरेज़ाँ दुनिया
हल्क़ा-ए-ज़ुल्फ़ मदार-ए-दो-जहाँ है कि जो था
मेरे हँसने पे ख़फ़ा थे मिरे रोने पे हँसे
वही रंग-ए-सितम इश्वा-गिराँ है कि जो था
संग-ए-तिफ़्लाँ से ज़रा बच के रहे क़स्र-ए-बुलंद
ये वही कार-गह-ए-शीशा-गराँ है कि जो था
दोस्तो हम-नफ़सो सुनते हो 'आबिद' की ग़ज़ल
ये वही शोला-नवा सोख़्ता-जाँ है कि जो था
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