सय्यद आबिद अली आबिद कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का सय्यद आबिद अली आबिद
नाम | सय्यद आबिद अली आबिद |
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अंग्रेज़ी नाम | Syed Aabid Ali Aabid |
जन्म की तारीख | 1906 |
मौत की तिथि | 1971 |
जन्म स्थान | Lahore, Pakistan |
ये क्या तिलिस्म है दुनिया पे बार गुज़री है
ये हादिसा भी हुआ है कि इश्क़-ए-यार की याद
यही दिल जिस को शिकायत है गिराँ-जानी की
या कभी आशिक़ी का खेल न खेल
वो मुझे मश्वरा-ए-तर्क-ए-वफ़ा देते थे
वाइज़ो मैं भी तुम्हारी ही तरह मस्जिद में
उन्हीं को अर्ज़-ए-वफ़ा का था इश्तियाक़ बहुत
तेरे ख़ुश-पोश फ़क़ीरों से वो मिलते तो सही
सुबू उठा कि ये नाज़ुक मक़ाम है साक़ी
शरअ-ओ-आईन की ताज़ीर के बा-वस्फ़ शबाब
शब-ए-हिज्राँ की दराज़ी से परेशान न था
साक़िया है तिरी महफ़िल में ख़ुदाओं का हुजूम
मुझे धोका हुआ कि जादू है
मेरे जीने का ये उस्लूब पता देता है
मेरा जीना है सेज काँटों की
कुछ एहतिराम भी कर ग़म की वज़्अ'-दारी का
कोई बरसा न सर-ए-किश्त-ए-वफ़ा
कहते थे तुझी को जान अपनी
कभी मैं जुरअत-ए-इज़हार-ए-मुद्दआ तो करूँ
जल्वा-ए-यार से क्या शिकवा-ए-बेजा कीजे
इश्क़ की तर्ज़-ए-तकल्लुम वही चुप है कि जो थी
ग़म-ए-दौराँ ग़म-ए-जानाँ का निशाँ है कि जो था
ग़म के तारीक उफ़ुक़ पर 'आबिद'
इक दिन उस ने नैन मिला के शर्मा के मुख मोड़ा था
दर-ए-इख़्लास की दहलीज़ पर ख़म हूँ 'आबिद'
दम-ए-रुख़्सत वो चुप रहे 'आबिद'
ऐ इल्तिफ़ात-ए-यार मुझे सोचने तो दे
आज आया है अपना ध्यान हमें
ये क्या तिलिस्म है दुनिया पे बार गुज़री है
ये अर्ज़-ए-शौक़ है आराइश-ए-बयाँ भी तो हो