नींद से आ कर बैठा है
नींद से आ कर बैठा है
ख़्वाब मिरे घर बैठा है
अक्स मिरा आईने में
ले कर पत्थर बैठा है
पलकें झुकी हैं सहरा की
जिस पे समुंदर बैठा है
एक बगूला यादों का
खा कर चक्कर बैठा है
उस की नींदों पर इक ख़्वाब
तितली बन कर बैठा है
रात की टेबल बुक कर के
चाँद डिनर पर बैठा है
अँधियारा ख़ामोशी की
ओढ़ के चादर बैठा है
'आतिश' धूप गई कब की
घर में क्यूँकर बैठा है
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