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दिल ज़बाँ ज़ेहन मिरे आज सँवरना चाहें - स्वप्निल तिवारी कविता - Darsaal

दिल ज़बाँ ज़ेहन मिरे आज सँवरना चाहें

दिल ज़बाँ ज़ेहन मिरे आज सँवरना चाहें

सब के सब सिर्फ़ तिरी बात ही करना चाहें

दाग़ हैं हम तिरे दामन के सो ज़िद्दी भी हैं

हम कोई रंग नहीं हैं कि उतरना चाहें

आरज़ू है हमें सहरा की सो हैं भी सैराब

ख़ुश्क हो जाएँ हम इक पल में जो झरना चाहें

ये बदन है तिरा ये आम सा रस्ता तो नहीं

इस के हर मोड़ पे हम सदियों ठहरना चाहें

ये सहर है तो भला चाहिए किस को ये कि हम

शब की दीवार से सर फोड़ के मरना चाहें

जैसे सोए हुए पानी में उतरता है साँप

हम भी चुप-चाप तिरे दिल में उतरना चाहें

आम से शख़्स के लगते हैं यूँ तो तेरे पाँव

सारे दरिया ही जिन्हें छू के गुज़रना चाहें

चाहते हैं कि कभी ज़िक्र हमारा वो करें

हम भी बहते हुए पानी पे ठहरना चाहें

नाम आया है तिरा जब से गुनहगारों में

सब गवाह अपनी गवाही से मुकरना चाहें

वस्ल और हिज्र के दरिया में वही उतरें जो

इस तरफ़ डूब के उस ओर उभरना चाहें

कोई आएगा नहीं टुकड़े हमारे चुनने

हम इसी जिस्म के अंदर ही बिखरना चाहें

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In Hindi By Famous Poet Swapnil Tiwari. is written by Swapnil Tiwari. Complete Poem in Hindi by Swapnil Tiwari. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.