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धूप के भीतर छुप कर निकली - स्वप्निल तिवारी कविता - Darsaal

धूप के भीतर छुप कर निकली

धूप के भीतर छुप कर निकली

तारीकी सायों भर निकली

रात गिरी थी इक गढ्ढे में

शाम का हाथ पकड़ कर निकली

रोया उस से मिल कर रोया

चाहत भेस बदल कर निकली

फूल तो फूलों सा होना था

तितली कैसी पत्थर निकली

सूत हैं घर के हर कोने में

मकड़ी पूरी बुन कर निकली

ताज़ा-दम होने को उदासी

ले कर ग़म का शावर निकली

जाँ निकली उस के पहलू में

वो ही मेरा मगहर निकली

हिज्र की शब से घबराते थे

यार यही शब बेहतर निकली

जब भी चोर मिरे घर आए

एक हँसी ही ज़ेवर निकली

'आतिश' कुंदन रूह मिली है

उम्र की आग में जल कर निकली

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In Hindi By Famous Poet Swapnil Tiwari. is written by Swapnil Tiwari. Complete Poem in Hindi by Swapnil Tiwari. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.