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वजूद मिट गया परवानों के सँभलने तक - सालेह नदीम कविता - Darsaal

वजूद मिट गया परवानों के सँभलने तक

वजूद मिट गया परवानों के सँभलने तक

धुआँ ही उठता रहा शम्अ के पिघलने तक

किसे नसीब हुई उस के जिस्म की ख़ुश्बू

वो मेरे साथ रहा रास्ता बदलने तक

अगर चराग़ की लौ पर ज़बान रख देता

ज़बान जलती भी कब तक चराग़ जलने तक

जहाँ भी ठहरोगे रुक जाएगा तुम्हारा वजूद

तुम्हारे साथ चलेगा तुम्हारे चलने तक

अभी से राह में नज़रें बिछा के मत बैठो

पलट के आएगा वो आफ़्ताब ढलने तक

हवा का क्या है न जाने ये कब बदल जाए

बदल चुकेगा ज़माना तिरे बदलने तक

सुकून किस को मिला ज़िंदगी की राहों में

ग़ुबार उठता रहा क़ाफ़िला निकलने तक

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In Hindi By Famous Poet Swaleh Nadeem. is written by Swaleh Nadeem. Complete Poem in Hindi by Swaleh Nadeem. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.