उस का नेज़ा था और मिरा सर था
और इक ख़ुश-गवार मंज़र था
कितनी आँखों से हो के गुज़रा वो
इक तमाशा जो सिर्फ़ पल भर था
दिल के रिश्तों की बात करते हो
एक शीशा था एक पत्थर था
उँगलियों के निशान बोल पड़े
कौन क़ातिल था किस का ख़ंजर था
हम उसूलों की बात करते रहे
और वो था कि अपनी ज़िद पर था