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पदमनी - सुरूर जहानाबादी कविता - Darsaal

पदमनी

अंदलीबों को मिली आह-ओ-बुका की तालीम

और परवानों को दी सोज़-ए-वफ़ा की तालीम

जब हर इक चीज़ को क़ुदरत ने अता की तालीम

आई हिस्से में तिरे ज़ौक़-ए-फ़ना की तालीम

नर्म ओ नाज़ुक तुझे आज़ा दिए जलने के लिए

दिल दिया आग के शोलों पे पिघलने के लिए

रंग तस्वीर के पर्दे में जो चमका तेरा

ख़ुद-ब-ख़ुद लूट गया जल्वा-ए-राना तेरा

ढाल कर काल-बुद-ए-नूर में पुतला तेरा

यद-ए-क़ुदरत ने बनाया जो सरापा तेरा

भर दिया कूट के सोज़-ए-ग़म-ए-शौहर दिल में

रख दिया चीर के इक शोला-ए-मुज़्तर दिल में

तू वो थी शम्अ कि परवाना बनाया तुझ को

तू वो लैला थी कि दीवाना बनाया तुझ को

रौनक़-ए-ख़ल्वत-ए-शाहाना बनाया तुझ को

नाज़िश-ए-हिमात-ए-मर्दाना बनाया तुझ को

नाज़ आया तिरे हिस्से में अदा भी आई

जाँ-फ़रोशी भी, मोहब्बत भी, वफ़ा भी, आई

आई दुनिया में जो तू हुस्न में यकता बन कर

चमन-ए-दहर में फूली गुल-ए-राना बन कर

रही माँ बाप की आँखों का जो तारा बन कर

दिल-ए-शौहर में रही ख़ाल-ए-सुवैदा बन कर

हुस्न-ए-ख़िदमत से शगुफ़्ता दिल-ए-शौहर रक्खा

कि क़दम जादा-ए-ताअत से न बाहर रक्खा

तेरी फ़ितरत में मुरव्वत भी थी ग़म-ख़्वारी भी

तेरी सूरत में अदा भी तरह-दारी भी

जल्वा-ए-हुस्न में शामिल थी निको-कारी भी

दर्द आया तिरे हिस्से में, तो ख़ुद्दारी भी

आग पर भी न तुझे आह मचलते देखा

तपिश-ए-हुस्न को पहलू न बदलते देखा

तू वो इस्मत की थी ओ आईना-सीमा तस्वीर

हुस्न-ए-सीरत से थी तेरी मुतजला तस्वीर

लाख तस्वीरों से थी इक तिरी ज़ेबा तस्वीर

तुझ को क़ुदरत ने बनाया था सरापा तस्वीर

नूर ही नूर तिरे जल्वा-ए-मस्तूर में था

अंजुम-ए-नाज़ का झुरमुट रुख़-ए-पुर-नूर में था

लब में एजाज़ हया चश्म-ए-फ़ुसूँ-साज़ में थी

कि क़यामत की अदा तेरे हर अंदाज़ में थी

शक्ल फिरती जो तिरी दीदा-ए-ग़म्माज़ में थी

बर्क़-ए-बेताब तिरी जल्वा-गाह-ए-नाज़ में थी

ये वो बिजली थी क़यामत की तड़प थी जिस में

शोला-ए-नार-ए-उक़ूबत की तड़प थी जिस में

ये वो बिजली थी जो तेग़-ए-शरर-अफ़्शाँ हो कर

कौंद उठी क़िला-ए-चित्तौड़ में जौलाँ हो कर

ये वो बिजली थी जो सोज़-ए-ग़म-ए-हिर्मां हो कर

ख़ाक सी लोट गई तेरी पशीमाँ हो कर

ये वो बिजली थी तुझे जिस के असर ने फूँका

रफ़्ता रफ़्ता तपिश-ए-सोज़-ए-जिगर ने फूँका

आह ओ इश्वा ओ अंदाज़ ओ अदा की देवी

आह ओ हिन्द के नामूस-ए-वफ़ा की देवी

आह ओ परतव-ए-अनवार-ए-सफ़ा की देवी

ओ ज़ियारत-कदा-ए-शर्म-ओ-हया की देवी

तेरी तक़्दीस का क़ाएल है ज़माना अब तक

तेरी इफ़्फ़त का ज़बाँ पर है फ़साना अब तक

आफ़रीं है तिरी जाँ-बाज़ी ओ हिम्मत के लिए

आफ़रीं है तिरी इफ़्फ़त तिरी इस्मत के लिए

क्या मिटाएगा ज़माना तिरी शोहरत के लिए

कि चली आती है इक ख़ल्क़ ज़ियारत के लिए

नक़्श अब तक तिरी अज़्मत का है बैठा दिल में

तू वो देवी है, तिरा लगता है मेला दिल में

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In Hindi By Famous Poet Suroor Jahanabadi. is written by Suroor Jahanabadi. Complete Poem in Hindi by Suroor Jahanabadi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.