यही नहीं कि मिरा दिल ही मेरे बस में न था
यही नहीं कि मिरा दिल ही मेरे बस में न था
जो तू मिला तो में ख़ुद अपनी दस्तरस में न था
ब-नाम-ए-अहद-ए-रिफ़ाक़त भी हम-क़दम न हुआ
ये हौसला मिरे मासूम हम-नफ़स में न था
अजीब सेहर का आलम था उस की क़ुर्बत में
वो मेरे पास था और मेरी दस्तरस में न था
न जाने क़ाफ़िला-ए-अहल-ए-दिल पे क्या गुज़री
ये इज़्तिराब कभी नाला-ए-जरस में न था
ख़बर तो होगी तुझे तेरे जाँ-निसारों में
कोई तो था सर-ए-मक़्तल जो पेश-ओ-पस में न था
'सुरूर' अपने चमन की फ़ज़ा है क्या कहिए
सुकूत का तो वो आलम है जो क़फ़स में न था
(845) Peoples Rate This