तू उरूस-ए-शाम-ए-ख़याल भी तो जमाल-ए-रू-ए-सहर भी है
तू उरूस-ए-शाम-ए-ख़याल भी तो जमाल-ए-रू-ए-सहर भी है
ये ज़रूर है कि ब-ईं हमा मिरा एहतिमाम-ए-नज़र भी है
ये मिरा नसीब है हम-नशीं सर-ए-राह भी न मिले कहीं
वही मिरा जादा-ए-जुस्तजू वही उन की राहगुज़र भी है
न हो मुज़्महिल मिरे हम-सफ़र तुझे शायद उस की नहीं ख़बर
इन्हें ज़ुल्मतों ही के दोश पर अभी कारवान-ए-सहर भी है
हमा कश्मकश मिरी ज़िंदगी कभी आ के देख ये बेबसी
तिरी याद वज्ह-ए-सुकूँ सही वही राज़-ए-दीदा-ए-तर भी है
तिरे क़ुर्ब ने जो बढ़ा दिए कभी मिट सके न वो फ़ासले
वही पाँव हैं वही आबले वही अपना ज़ौक़-ए-सफ़र भी है
ब-हज़ार दानिश-ओ-आगही मिरी मस्लहत है अभी यही
मैं 'सुरूर'-ए-रहरव-ए-शब सही मिरी दस्तरस में सहर भी है
(794) Peoples Rate This