सोज़-ए-ग़म भी नहीं फ़ुग़ाँ भी नहीं
सोज़-ए-ग़म भी नहीं फ़ुग़ाँ भी नहीं
जल बुझी आग अब धुआँ भी नहीं
तू ब-ज़ाहिर वो मेहरबाँ भी नहीं
मन्नतें मेरी राएगाँ भी नहीं
जाने क्यूँ तुम से कुछ नहीं कहते
वर्ना हम इतने बे-ज़बाँ भी नहीं
वो निगाहें कि बे-नियाज़ भी हैं
और उन से कहीं अमाँ भी नहीं
दीदा-ओ-दिल हैं कब से चश्म-ब-राह
कोई उफ़्ताद-ए-ना-गहाँ भी नहीं
ऐ ख़ुशा कारोबार-ए-शौक़ 'सुरूर'
नफ़अ' कुछ हो न हो ज़ियाँ भी नहीं
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