कहे तो कौन कहे सरगुज़श्त-ए-आख़िर-ए-शब
कहे तो कौन कहे सरगुज़श्त-ए-आख़िर-ए-शब
जुनूँ है सर-ब-गरेबाँ ख़िरद है मोहर-ब-लब
हुदूद-ए-शौक़ की मंज़िल से ता-ब-हद्द-ए-अदब
हज़ार मरहला-ए-जाँ गुदाज़ ओ सब्र-तलब
ये आलम-ए-क़द-ओ-गेसू ये हुस्न-ए-आरिज़-ओ-लब
तमाम निकहत-ओ-नग़मा तमाम शेर-ओ-अदब
बदल सका न ज़माना मिज़ाज-ए-अहल-ए-जुनूँ
वही दिलों के तक़ाज़े वही नज़र की तलब
हज़ार हर्फ़-ए-हिकायत वो एक नीम-निगाह
हज़ार वा'दा-ओ-पैमाँ वो एक जुम्बिश-ए-लब
थके थके से सितारे धुआँ धुआँ सी फ़ज़ा
बहुत क़रीब है शायद सवाद-ए-मंज़िल-ए-शब
'सुरूर' मंज़िल-ए-जानाँ है कब से चश्म-ब-राह
भटक रहा है कहाँ कारवान-ए-शौक़-ओ-तलब
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