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कहे तो कौन कहे सरगुज़श्त-ए-आख़िर-ए-शब - सुरूर बाराबंकवी कविता - Darsaal

कहे तो कौन कहे सरगुज़श्त-ए-आख़िर-ए-शब

कहे तो कौन कहे सरगुज़श्त-ए-आख़िर-ए-शब

जुनूँ है सर-ब-गरेबाँ ख़िरद है मोहर-ब-लब

हुदूद-ए-शौक़ की मंज़िल से ता-ब-हद्द-ए-अदब

हज़ार मरहला-ए-जाँ गुदाज़ ओ सब्र-तलब

ये आलम-ए-क़द-ओ-गेसू ये हुस्न-ए-आरिज़-ओ-लब

तमाम निकहत-ओ-नग़मा तमाम शेर-ओ-अदब

बदल सका न ज़माना मिज़ाज-ए-अहल-ए-जुनूँ

वही दिलों के तक़ाज़े वही नज़र की तलब

हज़ार हर्फ़-ए-हिकायत वो एक नीम-निगाह

हज़ार वा'दा-ओ-पैमाँ वो एक जुम्बिश-ए-लब

थके थके से सितारे धुआँ धुआँ सी फ़ज़ा

बहुत क़रीब है शायद सवाद-ए-मंज़िल-ए-शब

'सुरूर' मंज़िल-ए-जानाँ है कब से चश्म-ब-राह

भटक रहा है कहाँ कारवान-ए-शौक़-ओ-तलब

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In Hindi By Famous Poet Suroor Barabankvi. is written by Suroor Barabankvi. Complete Poem in Hindi by Suroor Barabankvi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.