आरज़ू जिन की है उन की अंजुमन तक आ गए
आरज़ू जिन की है उन की अंजुमन तक आ गए
निकहत-ए-गुल के सहारे हम चमन तक आ गए
बे-रुख़ी से आप जब बेगाना-पन तक आ गए
आज हम भी जुरअत-ए-जुर्म-ए-सुख़न तक आ गए
मय-कदा फिर भी ग़नीमत है जहाँ इस दौर में
एक ही मरकज़ पे शैख़-ओ-बरहमन तक आ गए
जल बुझे अहल-ए-जुनूँ लेकिन किसी को क्या ख़बर
कितने शो'ले ख़ुद उसी गुल-पैरहन तक आ गए
मो'तबर हो कर रही दीवानगी अपनी 'सुरूर'
जितने अंदाज़-ए-जुनूँ थे बाँकपन तक आ गए
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