मैं नहीं कहता हर इक चीज़ पुरानी ले जा
मैं नहीं कहता हर इक चीज़ पुरानी ले जा
मुझ को जीने नहीं देती जो निशानी ले जा
एक बन-बास तो जीना है तुझे भी ऐ दोस्त
अपने हमराह कोई राम-कहानी ले जा
जिन से उम्मीद है सहरा में घनी छाँव की
उन दरख़्तों के लिए ढेर सा पानी ले जा
सच को काग़ज़ पे उतरने में हो ख़तरा शायद
मेरी सोची हुई हर बात ज़बानी ले जा
वो जो बैठे हैं हक़ीक़त का तसव्वुर ले कर
ऐसे लोगों के लिए कोई कहानी ले जा
(696) Peoples Rate This