एक दिन मेरा आईना मुझ को
एक दिन मेरा आईना मुझ को
मुझ से कर जाएगा जुदा मुझ को
वो भी मौजूद था किनारे पर
उस ने देखा था डूबता मुझ को
ग़म, मुसीबत, फ़िराक़, तन्हाई,
उस ने क्या कुछ नहीं दिया मुझ को
फूल हूँ ख़ाक तो नहीं हूँ मैं
रास कब आएगी हवा मुझ को
सैकड़ों आइने बदल डाले
अपना चेहरा नहीं मिला मुझ को
लब पे मोहर-ए-सुकूत भी तो नहीं
कर गया कौन बे-सदा मुझ को
मौत क्यूँ-कर नजात बख़्शेगी
ज़िंदगी तू ने क्या दिया मुझ को
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