अब तो दिल ओ दिमाग़ में कोई ख़याल भी नहीं
अब तो दिल ओ दिमाग़ में कोई ख़याल भी नहीं
अपना जुनून भी नहीं उस का जमाल भी नहीं
उस से बिछड़ के ज़ीस्त में ये ही गिला रहा मुझे
उस से जुदा भी हूँ मगर जीना मुहाल भी नहीं
इश्क़ की जंग में मियाँ ये ही उसूल है बजा
हाथ में उस के तेग़ हो आप के ढाल भी नहीं
मुझ को कहीं मिली नहीं कोई भी राह-ए-पुर-सुकूँ
सम्त-ए-जुनूब भी नहीं सम्त-ए-शुमाल भी नहीं
मेरे बदन पे था कभी उस के बदन का पैरहन
आज बला का हिज्र है जिस्म पे शाल भी नहीं
ये भी कमाल ही तो है क़ाबिल-ए-दाद साहिबान
आज कलाम-ए-'जश्न' में कोई कमाल भी नहीं
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