रौशनी क्या पड़ी है कमरे में
धूल उड़ने लगी है कमरे में
मुझ को घेरे हुए है मेरा वजूद
ये हक़ीक़त खुली है कमरे में
मुझ को बाहर कहीं निकलना है
रात होने लगी है कमरे में
अपनी साँसों को सुन रहा हूँ मैं
किस क़दर ख़ामुशी है कमरे में
इक ज़रा सा तिरा ख़याल आया
रौशनी हो गई है कमरे में