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अभी तक साँस लम्हे बुन रही है - सुलतान सुबहानी कविता - Darsaal

अभी तक साँस लम्हे बुन रही है

अभी तक साँस लम्हे बुन रही है

समुंदर से पुरानी दोस्ती है

ये जो आँखों में इक दुनिया खड़ी है

इसी में कुछ हक़ीक़त रह गई है

नहीं पहचाना उस ने जब से मुझ को

ज़मीं कुछ अजनबी सी लग रही है

हवा मुझ से बहुत ही बद-गुमाँ है

मगर मुझ से ही लग कर चल रही है

इसी को अपना सरमाया समझ लो

अगर कुछ आस बाक़ी रह गई है

जो कल तक सिर्फ़ मेरे नाम में थी

वो ख़ुश्बू आज तुझ को याद भी है

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In Hindi By Famous Poet Sultan Subhani. is written by Sultan Subhani. Complete Poem in Hindi by Sultan Subhani. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.