मेरे ख़ुश-आइंद-मुस्तक़बिल का पैग़म्बर भी तू
मेरे ख़ुश-आइंद-मुस्तक़बिल का पैग़म्बर भी तू
मेरी बर्बादी का मेरी जान पस-मंज़र भी तू
तू कि फ़ितरत की तरह है किस तरह तस्ख़ीर हो
यार खुश-मंज़र भी तू ज़िद्दी भी तू ख़ुद-सर भी तू
इक तज़ाद-ए-हुस्न-ए-मा'नी है तिरी ता'मीर में
दस्तरस में भी गिरफ़्त-ए-वक़्त से बाहर भी तू
तेरे चेहरे से अयाँ उस के न मिलने का अलम
ख़ुश-नज़र आता नहीं उस शख़्स से मिल कर भी तू
मेरे फ़न की सारी ज़ेबाइश तिरी निस्बत से है
जो छुपा है मेरे शे'रों में वो दानिश-वर भी तू
रूह तो पहले भी थी अब के बदन भी है असीर
अब तो यूँ लगता है जैसे हो मिरा पैकर भी तू
तू ही संग-ए-मील है अपने लिए सुल्तान-'रश्क'
अपने ही रस्ते में जो हाइल है वो पत्थर भी तू
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