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मेरे ख़ुश-आइंद-मुस्तक़बिल का पैग़म्बर भी तू - सुलतान रशक कविता - Darsaal

मेरे ख़ुश-आइंद-मुस्तक़बिल का पैग़म्बर भी तू

मेरे ख़ुश-आइंद-मुस्तक़बिल का पैग़म्बर भी तू

मेरी बर्बादी का मेरी जान पस-मंज़र भी तू

तू कि फ़ितरत की तरह है किस तरह तस्ख़ीर हो

यार खुश-मंज़र भी तू ज़िद्दी भी तू ख़ुद-सर भी तू

इक तज़ाद-ए-हुस्न-ए-मा'नी है तिरी ता'मीर में

दस्तरस में भी गिरफ़्त-ए-वक़्त से बाहर भी तू

तेरे चेहरे से अयाँ उस के न मिलने का अलम

ख़ुश-नज़र आता नहीं उस शख़्स से मिल कर भी तू

मेरे फ़न की सारी ज़ेबाइश तिरी निस्बत से है

जो छुपा है मेरे शे'रों में वो दानिश-वर भी तू

रूह तो पहले भी थी अब के बदन भी है असीर

अब तो यूँ लगता है जैसे हो मिरा पैकर भी तू

तू ही संग-ए-मील है अपने लिए सुल्तान-'रश्क'

अपने ही रस्ते में जो हाइल है वो पत्थर भी तू

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In Hindi By Famous Poet Sultan Rashk. is written by Sultan Rashk. Complete Poem in Hindi by Sultan Rashk. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.