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ख़ुशियाँ न छोड़ अपने लिए ग़म तलब न कर - सुलतान रशक कविता - Darsaal

ख़ुशियाँ न छोड़ अपने लिए ग़म तलब न कर

ख़ुशियाँ न छोड़ अपने लिए ग़म तलब न कर

ऐ हम-नशीं यहाँ कोई महरम तलब न कर

किन हिजरतों के बा'द हुआ है ये मो'तबर

परवरदिगार मुझ से मिरा ग़म तलब न कर

कुछ और ज़ख़्म खा कि मिले मंज़िल-ए-मुराद

लम्हों से अपने ज़ख़्म का मरहम तलब न कर

ऐ दिल किसी से मिल के बिछड़ने में फ़ाएदा

मुज़्मर है जो विसाल में वो सम तलब न कर

टकरा न मुझ को मेरी अना के पहाड़ से

मेरे लिए वो साअ'त-ए-बरहम तलब न कर

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In Hindi By Famous Poet Sultan Rashk. is written by Sultan Rashk. Complete Poem in Hindi by Sultan Rashk. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.