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वहशत-ए-दस्त-ओ-गरेबाँ न तुझे है न मुझे - सुल्तान गौरी कविता - Darsaal

वहशत-ए-दस्त-ओ-गरेबाँ न तुझे है न मुझे

वहशत-ए-दस्त-ओ-गरेबाँ न तुझे है न मुझे

जुर्रत-ए-दश्त-ओ-बयाबाँ न तुझे है न मुझे

दिल के कहने से अबस उस की तमन्ना की थी

हसरत-ए-रंग-ए-बहाराँ न तुझे है न मुझे

छोड़ आए तिरी ख़ातिर क़फ़स-ए-आफ़िय्यत

रास अब सेहन-ए-गुलिस्ताँ न तुझे है न मुझे

अपनी ही आग में जलने की क़सम खाई है

ख़्वाहिश-ए-शम्-ए-फ़रोज़ाँ न तुझे है न मुझे

याद आई तो फ़क़त चाँद का चेहरा देखा

ताब-ए-नूर-ए-रुख़-ए-ताबाँ न तुझे है न मुझे

कुछ न कुछ उस ने रह-ओ-रस्म निभाई होगी

बे-सबब शिकवा-ए-'सुल्तान' न तुझे है न मुझे

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In Hindi By Famous Poet Sultan Ghauri. is written by Sultan Ghauri. Complete Poem in Hindi by Sultan Ghauri. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.