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वही बे-सबब से निशाँ हर तरफ़ - सुल्तान अख़्तर कविता - Darsaal

वही बे-सबब से निशाँ हर तरफ़

वही बे-सबब से निशाँ हर तरफ़

वही नक़्श-ए-सद-राएगाँ हर तरफ़

वही बे-इरादा सफ़र सामने

वही मंज़िलों का गुमाँ हर तरफ़

वही आग रौशन हुई ख़ून में

वही ख़्वाहिशों का धुआँ हर तरफ़

वही सब के सब ढेर होते हुए

वही तेज़ आँधी रवाँ हर तरफ़

वही बे-घरी हर तरफ़ ख़ेमा-ज़न

वही ढेर सारे मकाँ हर तरफ़

वही वक़्त की धूप ढलती हुई

वही रोज़ ओ शब का ज़ियाँ हर तरफ़

वही शहर-दर-शहर मसरूफ़ियत

वही फ़िक्र-ए-कार-ए-जहाँ हर तरफ़

वही जलती-बुझती हुई ज़िंदगी

वही कोशिश-ए-राएगाँ हर तरफ़

वही बे-ज़रर सी ज़मीं चार-सू

वही संग-दिल आसमाँ हर तरफ़

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In Hindi By Famous Poet Sultan Akhtar. is written by Sultan Akhtar. Complete Poem in Hindi by Sultan Akhtar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.