Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_d307750fb185ba91d68c3a99a3b01e5c, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
तन्हाई की ख़लीज है यूँ दरमियान में - सुल्तान अख़्तर कविता - Darsaal

तन्हाई की ख़लीज है यूँ दरमियान में

तन्हाई की ख़लीज है यूँ दरमियान में

हर शख़्स जैसे क़ैद हो अंधे मकान में

उस के लबों पे सात-समुंदर का अक्स था

सदियों की प्यास जज़्ब थी मेरी ज़बान में

आई अगर घटा उसे सूरज ने खा लिया

अब के बरस भी आग लगी आसमान में

टकरा के इख़्तिलाफ़ की दीवार तोड़ दी

ज़िद्दी था सर-बुलंद हुआ ख़ानदान में

यूँ भी दहकते दश्त से क्या कम थी ज़िंदगी

बे-कार धूप कूद पड़ी दरमियान में

बेहतर है अपने-आप से कुछ बोलते रहो

यूँ चुप रहे तो ज़ंग लगेगा ज़बान में

(714) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Sultan Akhtar. is written by Sultan Akhtar. Complete Poem in Hindi by Sultan Akhtar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.