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सिलसिला मेरे सफ़र का कभी टूटा ही नहीं - सुल्तान अख़्तर कविता - Darsaal

सिलसिला मेरे सफ़र का कभी टूटा ही नहीं

सिलसिला मेरे सफ़र का कभी टूटा ही नहीं

मैं किसी मोड़ पे दम लेने को ठहरा ही नहीं

ख़ुश्क होंटों के तसव्वुर से लरज़ने वालो

तुम ने तपता हुआ सहरा कभी देखा ही नहीं

अब तो हर बात पे हँसने की तरह हँसता हूँ

ऐसा लगता है मिरा दिल कभी टूटा ही नहीं

मैं वो सहरा जिसे पानी की हवस ले डूबी

तू वो बादल जो कभी टूट के बरसा ही नहीं

ऐसी वीरानी थी दर पे कि सभी काँप गए

और किसी ने पस-ए-दीवार तो देखा ही नहीं

मुझ से मिलती ही नहीं है कभी मिलने की तरह

ज़िंदगी से मिरा जैसे कोई रिश्ता ही नहीं

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In Hindi By Famous Poet Sultan Akhtar. is written by Sultan Akhtar. Complete Poem in Hindi by Sultan Akhtar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.