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सब का चेहरा पस-ए-दीवार-ए-अना रहता है - सुल्तान अख़्तर कविता - Darsaal

सब का चेहरा पस-ए-दीवार-ए-अना रहता है

सब का चेहरा पस-ए-दीवार-ए-अना रहता है

आईने से यहाँ हर शख़्स ख़फ़ा रहता है

फिर भी हम लोग वहाँ जीते हैं जीने की तरह

मौसम-ए-क़हर जहाँ ठहरा हुआ रहता है

उस के आने की अब उम्मीद नहीं है रौशन

फिर भी दरवाज़ा-ए-दिल है कि खुला रहता है

रंग-ए-ताबीर चमकता ही नहीं आँखों में

रात भर ख़्वाब का बाज़ार सजा रहता है

बस उसी अक्स से ख़ाइफ़ है हर इक शख़्स यहाँ

आईना-ख़ाने में जो चेहरा-नुमा रहता है

ख़ाना-ए-दिल पे हुकूमत है उसी की 'अख़्तर'

ये अलग बात कि वो मुझ से ख़फ़ा रहता है

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In Hindi By Famous Poet Sultan Akhtar. is written by Sultan Akhtar. Complete Poem in Hindi by Sultan Akhtar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.